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जिंदगी जीना सिखाएगी- ममता चौहान, ( स्वरचित कविता)

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जिंदगी जीना सिखाएगी जितना सिखोंगे उतना सिखाएगी तुम थक भी गए फिर भी धकेल कर वो तुमको आगे बढ़ाएगी। कहेगी  आज कुछ नया सिख हम भले ही तय्यार ना हो लेकिन वो अपना कार्य सरलता से कर जाएगी। कभी घाटे का सौदा तो कभी मुनाफा दे जाएगी। तु टेंशन ना ले ये हर दिन एक नया पाठ पढ़ाएगी। कभी अपने-पराऐ की पहचान कराएगी तो कभी सच्च को झुठ  बताएगी। कभी धीरज तो कभी  साहस बढ़ाएगी। इन्हीं छोटे - छोटे पाठोंसे  हमें परिपक्व बनाएगी।              ----------- ममता चौहान

क्यों? - ममता चौहान ( स्वरचित कविता)

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क्यों? लोग क्यों  कहकर नकर जाते हैं विश्वास दिलाते - दिलाते एक दिन विश्वासघात कर जाते हैं। कहने को बड़ा अच्छा लगता है “ उम्र भर साथ निभाउंगा"! साथ निभाने से पहले ही न जाने क्यों साथ छोड़ जाते है। मीठी-मीठी बातें कर कड़वाहट का एहसास दिलाते हैं समय-समय पर बदलकर ये लोग अपनी औकात बताते हैं। हम मनुष्य है कोई गिरगिट नहीं तो फिर क्यों, हम समय समय रंग बदलते हैं? जब निभा नहीं सकते किसी भी रिश्ते को तो क्यों उम्मीदे  लगाकर ना उम्मीद करते हो।             --------- ममता चौहान

जिंदगी - ममता चौहान, ( स्वरचित )

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  जिंदगी ऐ जिंदगी तु भले ही खामोश है लेकिन बहुत कुछ कहती हैं। तेरे इशारों के बारे में सुना था में ने आज उसे  मेहसूस तु कराती है। कहते हैं जो होता है उसके पिछे भी कोई वजह होती है। बस उसी वजह  की तलाश मुझे हमेशा रहती है। कहने को तो कोई ग़म नहीं मगर ऐ जिंदगी में खुश भी नहीं! चहा जिसे वो मुझे मिला नहीं  पाया वो जिसे मैं ने सोचा तक नहीं। जिंदगी तु कमाल है तु धनुष से निकला बाण है। ना तु किसी के पकड़ में आती है और ना रोके से रुकती है। कहते हैं कठपुतली है हम हमारी डोर हमेशा उसके हाथ है। वो जो मर्जी हमसे कराता है। कभी हंसाता तो कभी रुलाता है। रहती है भविष्य की चिंता हमें वो हमारी आखरी सांस का वक्त भी बतला देता है। ये मेरा , वो मेरा करते - करते हमारी सांस फुल जाती है फिर भी, कुछ साथ नहीं जाता हमेशा यही बतलाती है। जिंदगी के मायने क्या हैं जियो और जीने दो खुद भी खुश रहो और सब को रहने दो। किसी को  हंसी ना दे सके  तो  ग़म भी मत दो। किसी के लिए दुवा ना कर सके तो बद्दुआ भी मत दो। यहां हर कोई अपने कर्म का फल पाता है अच्छे को अच्छा , बुरे को बुरा  सब का हिसाब किताब होता है। जैसा सोचोगे  वैसा

लोग , कविता संग्रह, स्वरचित , ममता चौहान

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लोग लोगों को नाराजगी है लोगों से उन्हें तकलीफ है अपनों से जो अपना नहीं, उसे अपना मानते हैं लोग जो अपना है, उसे बिच रास्ते में अक्सर छोड़ जाते हैं लोग गलती किसकी है, यही साबित करने के लिए अक्सर एक-दूसरे से लड़ जाते हैं लोग अपना सहुर ना देख के दुसरों पर लांछन लगाते हैं लोग अपने को राम बता के औरों को रावन बताते हैं लोग अपनी गलती छुपा के दुसरों को ग़लत ठहराते हैं लोग लोगों का क्या लेना है आज आपके तारीफों के पुल बांधेंगे तो कल उसी को धुल में मिलाएंगे लोग आप के मुंह पर बाह-बाही कर  पिठ के पिछे छुरा घोंपते है लोग तकलीफ मे आप को देखकर  हमेशा मुस्कुराएंगे लोग आपकी भलाई का बोल कर नुक्सान कराएंगे लोग आपको गलत राह दिखा के हमेशा ठहाके लगाएंगे लोग अब आप ही सोचिए की, कैसे कैसे होते हैं लोग।               ----------- ममता चौहान

नज़रिया

   नज़रिया     कौन कहता है? खुश रहने के लिए, पैसे होने चाहिए। मैं ने निर्धन के घर में भी खुशी देखी है। समाधान होता है उस घर में, जहां दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती अमीरों को तो मैंने संपत्ति के लिए अपनों से लड़ते देखा है। कहते हैं सरस्वती और लक्ष्मी माता एकसाथ, एक जगह नहीं रह सकती मैंने दोनों को, बहनों की तरहां किसी के घर में एकसाथ रहते देखा है। सुख और शांति माना सबके घर में नहीं रहती लेकिन जहां बड़ों का आदर-सत्कार हो वहां से बच के कहीं नहीं जाती।                    ------------  ममता चौहान

ग़ज़ल -दुष्यंत कुमार

ग़ज़ल  ------- दुष्यंत कुमार कहां तो तय था चिरांग, हरेक घर के लिए, कहां चिरांग मयस्सर नहीं शहर के लिए। यहां दरख़्तों के साये में धुप लगती है, चलो यहां से चले और उम्र भर के लिए। न हो कमीज़ तो पांवो से पेट ढक लेंगे, ये लोग कितने मुनासिब है, इस सफर के लिए। खुदा नहीं न सही, आदमी का ख्वाब सही, कोई हसीन नजारा तो है नजर के लिए। तेरा निजाम है सिल दे जुबान शायर की, ये एहतियार जरूरी है इस शहर के लिए। जिएं तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले, मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए।              ---------- दुष्यंत कुमार

अकाल और उसके बाद -- नागार्जुन

    अकाल और उसके बाद                         ----- नागार्जुन कई दिनों तक चूल्हा रोया , चक्की रही उदास कई दिनों तक कानी कुतियॉं सोई उनके पास कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त कई दिनों तक चुहों की भी हालत रही शिकस्त। दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद धुआं उठा आंगन से ऊपर कई दिनों के बाद चमक उठी घर भर की आंखें कई दिनों के बाद कौए ने खुजलाई पॉंखें कई दिनों के बाद।                      -------- नागार्जुन